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आर्गेनिक खेती कैसे शुरू करें? Organic Farming in Hindi

by Boss Wallah Blogs

आज के समय में स्वस्थ जीवनशैली और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ रही है। इसी कड़ी में organic farming in hindi (जैविक खेती) का महत्व भी तेजी से बढ़ा है। रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से बचकर जब हम प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर खेती करते हैं, तो उसे जैविक खेती कहा जाता है। यह न केवल हमें पौष्टिक और सुरक्षित भोजन प्रदान करती है, बल्कि हमारी मिट्टी, पानी और पर्यावरण को भी स्वस्थ रखती है।

अगर आप भी जैविक खेती शुरू करने की सोच रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए है। इसमें हम आपको organic farming in hindi से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी, शुरुआत करने के तरीके, फायदे, चुनौतियाँ और सरकारी योजनाओं के बारे में विस्तार से बताएंगे।

जैविक खेती, कृषि की एक ऐसी प्रणाली है जिसमें संश्लेषित (सिंथेटिक) उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों, और जेनेटिकली मॉडिफाइड ऑर्गेनिज्म (GMOs) का उपयोग नहीं किया जाता है। इसका मुख्य आधार हैं:

  • स्वस्थ मिट्टी: मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक खाद (गोबर खाद, केंचुआ खाद, कम्पोस्ट), हरी खाद और फसल चक्र जैसी तकनीकों का उपयोग।
  • पर्यावरण संतुलन: जैव विविधता का संरक्षण और प्राकृतिक संसाधनों का टिकाऊ उपयोग।
  • पशु कल्याण: पशुओं के स्वास्थ्य और प्राकृतिक व्यवहार का ध्यान रखना।
  • स्वस्थ भोजन: उपभोक्ताओं के लिए रसायन-मुक्त, पौष्टिक भोजन का उत्पादन।

मुख्य सिद्धांत: जैविक खेती का लक्ष्य प्रकृति के साथ मिलकर काम करना है, न कि उसके विरुद्ध। यह मिट्टी को जीवित मानती है और उसकी सेहत को प्राथमिकता देती है।

(Source – Freepik)

पारंपरिक खेती के मुकाबले जैविक खेती के कई फायदे हैं:

पर्यावरणीय लाभ:

  • मिट्टी का स्वास्थ्य: जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी की संरचना सुधरती है, उसमें जैविक कार्बन बढ़ता है और जल धारण क्षमता में वृद्धि होती है।
  • जल संरक्षण: रासायनिक प्रदूषण कम होने से भूजल और सतही जल साफ रहता है। मिट्टी की बेहतर जल धारण क्षमता से सिंचाई की आवश्यकता भी कम हो सकती है।
  • जैव विविधता: रासायनिक कीटनाशकों के अभाव में मित्र कीटों, पक्षियों और अन्य जीवों की संख्या बढ़ती है, जो प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन में कमी: जैविक खेती कार्बन को मिट्टी में संग्रहित करने में मदद करती है और कम ऊर्जा का उपयोग करती है, जिससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम होता है।

स्वास्थ्य लाभ:

  • रसायन मुक्त भोजन: जैविक उत्पादों में हानिकारक कीटनाशकों और रसायनों के अवशेष नहीं होते, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहतर है।
  • अधिक पोषक तत्व: कुछ अध्ययनों से पता चला है कि जैविक खाद्य पदार्थों में पारंपरिक रूप से उगाए गए खाद्य पदार्थों की तुलना में कुछ पोषक तत्व (जैसे एंटीऑक्सिडेंट) अधिक हो सकते हैं।

आर्थिक लाभ:

  • प्रीमियम मूल्य: जैविक उत्पादों की मांग बढ़ रही है और किसान अक्सर अपने उत्पादों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्त करते हैं।
  • कम लागत (दीर्घकालिक): शुरुआत में लागत अधिक हो सकती है, लेकिन लंबे समय में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर निर्भरता कम होने से लागत घट जाती है।
  • निर्यात क्षमता: प्रमाणित जैविक उत्पादों की वैश्विक बाजार में अच्छी मांग है।
  • सरकारी सहायता: सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
(Source – Freepik)

जैविक खेती शुरू करना एक प्रक्रिया है जिसमें धैर्य और सही जानकारी की आवश्यकता होती है। यहाँ चरण-दर-चरण मार्गदर्शिका दी गई है:

1. जानकारी और योजना (Research and Planning)

  • जैविक खेती के सिद्धांतों, तकनीकों और स्थानीय नियमों को समझें।
  • अपने क्षेत्र की जलवायु, मिट्टी के प्रकार और बाजार की मांग के अनुसार उपयुक्त फसलों का चयन करें।
  • एक विस्तृत फार्म योजना बनाएं, जिसमें लागत, संसाधन और समय-सीमा शामिल हो।

2. स्थान का चुनाव (Site Selection)

  • ऐसी भूमि चुनें जहाँ पहले रासायनिक खेती कम हुई हो या न हुई हो।
  • मिट्टी की जांच करवाएं ताकि उसकी उर्वरता और किसी भी प्रकार के संदूषण का पता चल सके।
  • पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करें। सिंचाई के लिए स्वच्छ जल स्रोत आवश्यक है।
  • बाजार से निकटता परिवहन लागत को कम करने में मदद कर सकती है।

3. मिट्टी का प्रबंधन (Soil Management)

  • यह जैविक खेती का आधार है। मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने के लिए जैविक तरीकों का उपयोग करें:
    • कम्पोस्ट खाद (Compost): गोबर, फसल अवशेष, रसोई के कचरे आदि से बनी खाद। नाडेप कम्पोस्ट (NADEP Compost) एक लोकप्रिय विधि है।
    • वर्मीकम्पोस्ट (Vermicompost): केंचुओं द्वारा बनाई गई उच्च गुणवत्ता वाली खाद।
    • हरी खाद (Green Manure): खेत में ढैंचा, सनई, मूंग जैसी फसलें उगाकर उन्हें मिट्टी में मिला देना।
    • फसल चक्र (Crop Rotation): अलग-अलग तरह की फसलें बारी-बारी से लगाना ताकि मिट्टी से पोषक तत्वों का संतुलन बना रहे और कीट-रोगों का प्रकोप कम हो।
    • जैविक उर्वरक (Bio-fertilizers): राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, पीएसबी जैसे सूक्ष्मजीवों का उपयोग जो मिट्टी में पोषक तत्व (जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस) उपलब्ध कराते हैं।

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4. फसल और बीज का चुनाव (Crop and Seed Selection)

  • स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल और कीट-रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें।
  • हमेशा जैविक या अनुपचारित (untreated) बीजों का उपयोग करें। GMO बीजों से बचें।

5. जल प्रबंधन (Water Management)

  • पानी का कुशल उपयोग करें। ड्रिप सिंचाई (Drip Irrigation) और स्प्रिंकलर सिंचाई जैसी विधियाँ पानी बचाती हैं।
  • वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) करें।

6. पोषक तत्व प्रबंधन (Nutrient Management)

  • फसलों को आवश्यक पोषक तत्व देने के लिए पूरी तरह से जैविक खादों और जैव उर्वरकों पर निर्भर रहें।
  • मिट्टी परीक्षण के आधार पर पोषक तत्वों की आवश्यकता का आकलन करें।

7. कीट और रोग प्रबंधन (Pest and Disease Management)

  • रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग वर्जित है। जैविक तरीकों का उपयोग करें:
    • जैव-कीटनाशक (Bio-pesticides): नीम का तेल, गौमूत्र आधारित कीटनाशक, ट्राइकोडर्मा आदि।
    • मित्र कीटों का संरक्षण: ऐसे कीटों को प्रोत्साहित करें जो हानिकारक कीटों को खाते हैं।
    • फसल चक्रण और मिश्रित खेती: कीट और रोगों के जीवन चक्र को तोड़ने में मदद मिलती है।
    • फंदा फसलें (Trap Crops): मुख्य फसल के चारों ओर ऐसी फसलें लगाना जो कीटों को अपनी ओर आकर्षित करें।
    • प्रतिरोधी किस्में: रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव करें।

8. खरपतवार प्रबंधन (Weed Management)

  • मैनुअल निराई-गुड़ाई (Manual Weeding): हाथ से या कृषि यंत्रों से खरपतवार निकालना।
  • मल्चिंग (Mulching): मिट्टी को जैविक पदार्थों (जैसे पुआल, सूखी पत्तियां) या प्लास्टिक मल्च से ढकना ताकि खरपतवार न उगें और नमी बनी रहे।
  • कवर फसलें (Cover Crops): खाली समय में जमीन पर फसलें उगाना।

9. संक्रमण अवधि (Conversion Period)

  • यदि आपकी भूमि पर पहले रासायनिक खेती होती थी, तो उसे पूरी तरह से जैविक बनने में आमतौर पर 2-3 साल लगते हैं। इस अवधि के दौरान आपको जैविक तरीकों का पालन करना होगा, लेकिन उपज को ‘जैविक’ के रूप में प्रमाणित नहीं किया जा सकता (इसे ‘संक्रमणकालीन जैविक’ कहा जा सकता है)।

10. जैविक प्रमाणीकरण (Organic Certification)

  • बाजार में अपने उत्पाद को ‘जैविक’ (Organic) के रूप में बेचने के लिए प्रमाणीकरण आवश्यक है। यह उपभोक्ताओं को विश्वास दिलाता है कि उत्पाद निर्धारित जैविक मानकों के अनुसार उगाया गया है।
  • भारत में प्रमाणीकरण की दो मुख्य प्रणालियाँ हैं:
    • NPOP (National Program for Organic Production): यह तृतीय-पक्ष प्रमाणीकरण प्रणाली है, जो APEDA (कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण) द्वारा मान्यता प्राप्त एजेंसियों द्वारा की जाती है। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के लिए मान्य है। इसकी लागत थोड़ी अधिक हो सकती है।
    • PGS-India (Participatory Guarantee System): यह भागीदारी गारंटी प्रणाली है, जिसे कृषि मंत्रालय के तहत NCOF (राष्ट्रीय जैविक खेती केंद्र) द्वारा प्रबंधित किया जाता है। यह किसानों के समूहों द्वारा आपसी विश्वास और निरीक्षण पर आधारित है और मुख्य रूप से घरेलू बाजार के लिए है। यह छोटे किसानों के लिए कम खर्चीला और सरल विकल्प है। आप pgsindia-ncof.gov.in पोर्टल पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
  • एकीकृत ‘भारत जैविक’ लोगो: FSSAI और APEDA ने मिलकर यह लोगो लॉन्च किया है।

11. रिकॉर्ड रखना (Record Keeping)

  • खेत में उपयोग किए जाने वाले सभी आदानों (खाद, बीज, जैव-कीटनाशक), फसल उत्पादन, और बिक्री का विस्तृत रिकॉर्ड रखना प्रमाणीकरण और बेहतर प्रबंधन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
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जैविक खेती फायदेमंद होने के साथ-साथ कुछ चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करती है:

  • शुरुआती कम उपज: संक्रमण काल के दौरान और शुरुआती वर्षों में रासायनिक खेती की तुलना में उपज कम हो सकती है।
  • अधिक श्रम: खरपतवार और कीट नियंत्रण के लिए अधिक मानवीय श्रम की आवश्यकता हो सकती है।
  • प्रमाणीकरण लागत: विशेष रूप से NPOP प्रमाणीकरण महंगा हो सकता है, खासकर छोटे किसानों के लिए।
  • ज्ञान और तकनीकी जानकारी का अभाव: जैविक तकनीकों के बारे में सही जानका री और प्रशिक्षण की कमी।
  • बाजार तक पहुँच: छोटे किसानों के लिए संगठित जैविक बाजार तक पहुँचना मुश्किल हो सकता है।
  • कीट और रोग नियंत्रण: कभी-कभी कीटों या बीमारियों का प्रकोप गंभीर हो सकता है और जैविक तरीकों से उन्हें नियंत्रित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

भारत सरकार और राज्य सरकारें जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं:

  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY): यह सबसे प्रमुख योजनाओं में से एक है। इसके तहत, किसानों को क्लस्टर (समूह) में जैविक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। सरकार प्रति हेक्टेयर 3 साल के लिए जैविक आदानों, प्रमाणीकरण, विपणन, प्रशिक्षण आदि के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है (जैसे रु. 31,500/हेक्टेयर)।
  • पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट (MOVCDNER): यह योजना विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में जैविक खेती और संबंधित मूल्य श्रृंखला विकसित करने पर केंद्रित है।
  • राष्ट्रीय जैविक खेती परियोजना (NPOF): जैव उर्वरकों और जैविक कीटनाशकों के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देना।
  • अन्य योजनाएं जैसे राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन में भी जैविक खेती के घटकों को शामिल किया गया है।

आप इन योजनाओं का लाभ उठाने के लिए अपने जिले के कृषि विभाग कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।

भारत में अनेक किसान सफलतापूर्वक जैविक खेती कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, कई किसान गौ-आधारित जैविक खेती अपना रहे हैं, जिसमें गाय के गोबर और गौमूत्र का उपयोग खाद और कीटनाशक बनाने में किया जाता है। वे मिश्रित फसलें उगाकर और पशुपालन को एकीकृत करके अपनी आय बढ़ा रहे हैं और आत्मनिर्भर बन रहे हैं। सरकार की ‘आत्मा’ जैसी परियोजनाओं से भी किसानों को प्रशिक्षण और सहायता मिल रही है।

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Organic farming in hindi (जैविक खेती) सिर्फ एक कृषि पद्धति नहीं, बल्कि एक स्थायी भविष्य की ओर एक कदम है। यह पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य और किसानों की आर्थिक स्थिति के लिए फायदेमंद है। हाँ, इसमें कुछ चुनौतियाँ हैं, लेकिन सही जानकारी, योजना, सरकारी सहायता और मेहनत से इन पर काबू पाया जा सकता है। यदि आप एक किसान हैं या खेती शुरू करना चाहते हैं, तो जैविक खेती निश्चित रूप से एक विचारणीय और फायदेमंद विकल्प है। यह न केवल आपको स्वस्थ उपज देगा बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ धरती छोड़ने में भी मदद करेगा।


1. जैविक खेती शुरू करने में कितना खर्च आता है?
लागत भूमि की तैयारी, बीज, खाद, श्रम और प्रमाणीकरण जैसे कारकों पर निर्भर करती है। शुरुआती लागत पारंपरिक खेती से थोड़ी अधिक हो सकती है, लेकिन लंबी अवधि में आदान लागत कम हो जाती है। सरकारी सब्सिडी से भी मदद मिल सकती है।

2. क्या जैविक खेती में उपज कम होती है?
संक्रमण काल और शुरुआती कुछ वर्षों में उपज पारंपरिक खेती से थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार के साथ, उपज स्थिर हो जाती है और कई बार बेहतर भी हो सकती है।

3. जैविक प्रमाणीकरण क्यों जरूरी है?
यदि आप अपने उत्पादों को ‘जैविक’ बताकर बेचना चाहते हैं और प्रीमियम मूल्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो प्रमाणीकरण आवश्यक है। यह उपभोक्ताओं को उत्पाद की गुणवत्ता और जैविक मानकों के पालन का आश्वासन देता है।

4. सरकार जैविक खेती के लिए क्या मदद करती है?
सरकार PKVY, MOVCDNER जैसी योजनाओं के तहत क्लस्टर निर्माण, जैविक आदानों, प्रशिक्षण, प्रमाणीकरण और विपणन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है।

5. जैविक खाद कैसे बना सकते हैं?
जैविक खाद बनाने के कई तरीके हैं, जैसे गोबर और फसल अवशेषों से कम्पोस्ट बनाना, केंचुओं का उपयोग करके वर्मीकम्पोस्ट तैयार करना, या PROM (फॉस्फेट रिच ऑर्गेनिक मैन्योर) विधि अपनाना।

6. जैविक खेती में कीटों को कैसे नियंत्रित करें?
नीम आधारित कीटनाशक, गौमूत्र, मित्र कीटों का उपयोग, फसल चक्र, प्रतिरोधी किस्मों का चुनाव और फंदा फसलों जैसी जैविक विधियों का उपयोग किया जाता है।

7. क्या छोटी जोत वाले किसान भी जैविक खेती कर सकते हैं?
हाँ, बिलकुल। PGS-India प्रमाणीकरण प्रणाली विशेष रूप से छोटे और सीमांत किसानों के समूहों के लिए उपयोगी है। क्लस्टर बनाकर खेती करने से संसाधनों को साझा करने और बाजार तक पहुँचने में मदद मिलती है।

8. जैविक उत्पादों का बाजार कहाँ मिलेगा?
जैविक उत्पादों की मांग शहरों में बढ़ रही है। आप स्थानीय बाजारों, विशेष जैविक स्टोर, किसान उत्पादक संगठनों (FPOs) के माध्यम से, या सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म भी एक अच्छा विकल्प हैं।

9. क्या जैविक खेती लाभदायक है?
हाँ, जैविक खेती लाभदायक हो सकती है। हालाँकि शुरुआती वर्षों में चुनौतियाँ हो सकती हैं, लेकिन प्रीमियम मूल्य, घटती लागत और बढ़ती मांग के कारण यह लंबी अवधि में एक टिकाऊ और लाभकारी व्यवसाय बन सकता है।

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